आला Poetry

दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए

ज़ुबैर रिज़वी

सूरज निकलने शाम के ढलने में आ रहूँ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

दिनों में दिन थे शबों में शबें पड़ी हुई थीं

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

वो किताब

ज़ेहरा निगाह

कब तक वो मोहब्बत को निभाता नज़र आता

ज़ीशान साजिद

सेहन-ए-चमन में जाना मेरा और फ़ज़ा में बिखर जाना

ज़ेब ग़ौरी

है बहुत ताक़ वो बेदाद में डर है ये भी

ज़ेब ग़ौरी

चाँद की बेबसी को समझूँगी

ज़हरा क़रार

चाँद की बेबसी को समझूँगी

ज़हरा क़रार

किस ताज़ा मारके पे गया आज फिर 'ज़फ़र'

ज़फ़र इक़बाल

न कोई ज़ख़्म लगा है न कोई दाग़ पड़ा है

ज़फ़र इक़बाल

बिजली गिरी है कल किसी उजड़े मकान पर

ज़फ़र इक़बाल

करम के इस दौर-ए-इम्तिहाँ से वो दौर-ए-मश्क़-ए-सितम ही अच्छा

याक़ूब उस्मानी

ख़ूनी क़िला

वामिक़ जौनपुरी

अलिफ़ लैला

वामिक़ जौनपुरी

वक़्त की ताक़ पे दोनों की सजाई हुई रात

विपुल कुमार

ढूँढिए इस शहर में अब किस को हासिल कौन है

उर्मिलामाधव

तू कहाँ है मुझे ओ ख़्वाब दिखाने वाले

तारिक़ राशीद दरवेश

ख़िज़ाँ-नसीबों पे बैन करती हुई हवाएँ

तारिक़ क़मर

निगहबान-ए-चमन अब धूप और पानी से क्या होगा

तारिक़ मतीन

रंगून का मुशाएरा

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

इम्तिहान

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

क़रार दीदा-ओ-दिल में रहा नहीं है बहुत

सय्यद काशिफ़ रज़ा

किसी ख़याल की रौ में था मुस्कुराते हुए

सय्यद अमीन अशरफ़

मिरी क़दीम रिवायत को आज़माने लगे

सुल्तान अख़्तर

मैं लड़खड़ाया तो मुझ को गले लगाने लगे

सुल्तान अख़्तर

अभी रक्खा रहने दो ताक़ पर यूँही आफ़्ताब का आइना

सिराज लखनवी

न कुरेदूँ इश्क़ के राज़ को मुझे एहतियात-ए-कलाम है

सिराज लखनवी

वो अजब घड़ी थी मैं जिस घड़ी लिया दर्स नुस्ख़ा-ए-इश्क़ का

सिराज औरंगाबादी

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