स्वीकार Poetry

रवानी में नज़र आता है जो भी

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

जुनून-ए-इश्क़-ए-सर बेदार भी है

ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब

देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह

ज़िया जालंधरी

नूर ये किस का बसा है मुझ में

ज़की तारिक़

कोई इस बात को तस्लीम करे या न करे

ज़फ़र इक़बाल

जिस ने नफ़रत ही मुझे दी न 'ज़फ़र' प्यार दिया

ज़फ़र इक़बाल

बताऊँ मैं तुम्हें आँखों में आँसू या लहू क्या है

यूनुस ग़ाज़ी

वो जिन की लौ से हज़ारों चराग़ जलते थे

वासिफ़ देहलवी

नहीं दुनिया में सिवा ख़ार-ओ-ख़स-ए-कूचा-ए-दोस्त

वलीउल्लाह मुहिब

असीरी बे-मज़ा लगती है बिन-सय्याद क्या कीजे

वली उज़लत

लगाएँ आग ही दिल में कि कुछ उजाला हो

वजद चुगताई

तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ये कश्मकश-ए-मुनइ'म-ओ-नादार कहाँ तक

वफ़ा सिद्दीक़ी

इस ख़राबी की कोई हद है कि मेरे घर से

विपुल कुमार

हुए हो किस लिए बरहम अज़ीज़म

तसनीम आबिदी

सब्र-ओ-तस्लीम की सिपर भी नहीं

सय्यद सिद्दीक़ हसन

गली कूचों में जब सब जल-बुझा आहिस्ता आहिस्ता

सय्यद मुनीर

तिरी जुदाई में ये दिल बहुत दुखी तो नहीं

सय्यद काशिफ़ रज़ा

मसर्रत में भी है पिन्हाँ अलम यूँ भी है और यूँ भी

सय्यद हामिद

तुझ को पाने के लिए ख़ाक-ए-तमन्ना हो जाऊँ

सुल्तान अख़्तर

मैं जब्हा सा हूँ उस दर-ए-आली-मक़ाम का

शोला अलीगढ़ी

बलाएँ आँखों से उन की मुदाम लेते हैं

ज़ौक़

बे-नंग-ओ-नाम

शाज़ तमकनत

औरत

शौकत परदेसी

शम्अ' पर शम्अ' जलाती हुई साथ आती है

शमीम करहानी

हर नफ़स दीदा-ए-दिल में तिरी यादों का हुजूम

शकूर जावेद

हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाए हुए हैं

शाकिर ख़लीक़

नदी थी कश्तियाँ थीं चाँदनी थी झरना था

शहराम सर्मदी

मुझे तस्लीम बे-चून-ओ-चुरा तू हक़-ब-जानिब था

शहराम सर्मदी

तेरी तख़्लीक़ तिरा रंग हवाला था मिरा

शहनवाज़ ज़ैदी

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