वीरानी Poetry (page 3)

लब-ए-तनूर

सलमान अंसारी

रास्ता चाहिए दरिया की फ़रावानी को

सलीम शाहिद

हर्फ़-ए-बे-मतलब की मैं ने किस क़दर तफ़्सीर की

सलीम शाहिद

दिल भर आए और अब्र-ए-दीदा में पानी न हो

सलीम शाहिद

कोई याद ही रख़्त-ए-सफ़र ठहरे कोई राहगुज़र अनजानी हो

सलीम कौसर

दिल तुझे नाज़ है जिस शख़्स की दिलदारी पर

सलीम कौसर

चश्म बे-ख़्वाब हुई शहर की वीरानी से

सलीम कौसर

ये कैसे लोग हैं सदियों की वीरानी में रहते हैं

सलीम अहमद

मुझे इन आते जाते मौसमों से डर नहीं लगता

सलीम अहमद

लम्हा-ए-रफ़्ता का दिल में ज़ख़्म सा बन जाएगा

सलीम अहमद

दीवारों का जंगल जिस का आबादी है नाम

साहिर लुधियानवी

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो

साहिर लुधियानवी

चमन में रह के भी क्यूँ दिल की वीरानी नहीं जाती

सहर महमूद

साँस की धार ज़रा घुसती ज़रा काटती है

सईद शरीक़

देख पाए तो करे कोई पज़ीराई भी

सईद शरीक़

हम कि चेहरे पे न लाए कभी वीरानी को

सादुल्लाह शाह

रेत है इज़हार के पानी के पार

रियाज़ लतीफ़

खींच कर ले जाएगा अंजान महवर की तरफ़

रियाज़ लतीफ़

तेज़ है पीने में हो जाएगी आसानी मुझे

रियाज़ ख़ैराबादी

था मिरी जस्त पे दरिया बड़ी हैरानी में

राज़ी अख्तर शौक़

जिस पल मैं ने घर की इमारत ख़्वाब-आसार बनाई थी

राज़ी अख्तर शौक़

दिल में झाँका तो बहुत ज़ख़्म पुराने निकले

रज़ा अमरोही

रौशनी बन के अँधेरे पे असर हम ने किया

राशिद तराज़

अपने बीमार सितारे का मुदावा होती

राशिद तराज़

शराब-ए-नाब का क़तरा जो साग़र से निकल जाए

रशीद लखनवी

यक़ीनन है कोई माह-ए-मुनव्वर पीछे चिलमन के

रंजूर अज़ीमाबादी

पैहम मौज-ए-इमकानी में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

तबाही बस्तियों की है निगहबानों से वाबस्ता

राही कुरैशी

हम क्या जानें क़िस्सा क्या है हम ठहरे दीवाने लोग

राही मासूम रज़ा

अल्लाह रे यादों की ये अंजुमन-आराई

इक़बाल अज़ीम

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