भ्रम Poetry

अना

अज़ीज़ क़ैसी

कितने में बनती है मोहर ऐसी

अहमद जावेद

कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया

अनवर अंजुम

आधों की तरफ़ से कभी पौनों की तरफ़ से

आदिल मंसूरी

नज़र न आए तो सौ वहम दिल में आते हैं

ज़ुबैर रिज़वी

सितमगरी भी मिरी कुश्तगाँ भी मेरे थे

ज़ुबैर रिज़वी

शफ़क़-सिफ़ात जो पैकर दिखाई देता है

ज़ुबैर रिज़वी

हम

ज़िया जालंधरी

ख़ुद को समझा है फ़क़त वहम-ओ-गुमाँ भी हम ने

ज़िया जालंधरी

बरसों हुए तुम कहीं नहीं हो

ज़ेहरा निगाह

बदन के दोश पे साँसों का मक़बरा मैं हूँ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

फ़सील-ए-जिस्म गिरा कर बिखर न जाऊँ मैं

ज़ाहिद नवेद

नज़्म

ज़ाहिद डार

कनीज़-ए-वक़्त को नीलाम कर दिया सब ने

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

चमके गा अभी मेरे ख़यालात से आगे

ज़फ़र इक़बाल

तुम्हारी जुस्तुजू की है वहाँ तक

यूनुस ग़ाज़ी

मुसाफ़िरों के ये वहम-ओ-गुमाँ में था ही नहीं

याक़ूब तसव्वुर

सफ़ेद फूल मिले शाख़-ए-सीम-बर के मुझे

वज़ीर आग़ा

इस बहाने के बा'द कैसा इश्क़

वक़ार सहर

हर घड़ी वहम में गुज़रे हैं नए अख़बारात

वलीउल्लाह मुहिब

दीमक

वहीद अख़्तर

जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला

वहीद अख़्तर

मेरा वहम-ओ-गुमान रहने दे

विशाल खुल्लर

क़ज़ा जो दे तो इलाही ज़रा बदल के मुझे

वारिस किरमानी

बना के वहम ओ गुमाँ की दुनिया हक़ीक़तों के सराब देखूँ

उमैर मंज़र

मिरे चारा-गर तुझे क्या ख़बर, जो अज़ाब-ए-हिज्र-ओ-विसाल है

तसनीम आबिदी

सुकून-ए-दिल में वो बन के जब इंतिशार उतरा तो मैं ने देखा

ताहिर फ़राज़

मेहवर पे भी गर्दिश मिरी मेहवर से अलग हो

तफ़ज़ील अहमद

एक बुज़ुर्ग शायर परिंदे का तजरबा

ताबिश कमाल

वो नाज़ुक सा तबस्सुम रह गया वहम-ए-हसीं बन कर

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

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