ज़िम Poetry

इमारत हो कि ग़ुर्बत बोलती है

वलीउल्लाह वली

गुल-दान

आरिफ़ अब्दुल मतीन

फ़लक को फ़िक्र कोई मेहर-ओ-माह तक पहोंचे

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

ग़ज़ब की धार थी इक साएबाँ साबित न रह पाया

ज़ुबैर रिज़वी

कई कोठे चढ़ेगा वो कई ज़ीनों से उतरेगा

ज़ुबैर रिज़वी

अपना हर अंदाज़ आँखों को तर-ओ-ताज़ा लगा

ज़ेहरा निगाह

सब बड़े ज़ोम से आए थे नए सूरत-गर

ज़फ़र अज्मी

जान-ए-बे-ताब अजब तेरे ठिकाने निकले

ज़फ़र अज्मी

बहुत उकता गया हूँ अपने जी से

विश्वनाथ दर्द

जाने ये कैसा ज़हर दिलों में उतर गया

उम्मीद फ़ाज़ली

बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत

उमर अंसारी

पोशीदा किसी ज़ात में पहले भी कहीं था

तारिक़ नईम

हवा का हुक्म भी अब के नज़र में रक्खा जाए

तारिक़ नईम

ये हुजुम-ए-रस्म-ओ-रह दुनिया की पाबंदी भी है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

गुलों के साथ अजल के पयाम भी आए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

जो तिरी महफ़िल से ज़ौक़-ए-ख़ाम ले कर आए हैं

सय्यदा शान-ए-मेराज

आराफ़

सय्यद मुबारक शाह

ईद की ख़रीदारी

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

शौक़-ए-वारफ़्ता को मलहूज़-ए-अदब भी होगा

सय्यद अमीन अशरफ़

सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की

सुल्तान सुकून

हम ने ख़तरा मोल लिया नादानी में

सुबोध लाल साक़ी

कार-ए-मुश्किल ही किया दुनिया में गर मैं ने किया

सिद्दीक़ शाहिद

समझते क्या हैं इन दो चार रंगों को उधर वाले

शुजा ख़ावर

बे-नंग-ओ-नाम

शाज़ तमकनत

ख़ुद अपना हाल दिल-ए-मुब्तला से कुछ न कहा

शाज़ तमकनत

उतर रहा था समुंदर सराब के अंदर

शरीक़ अदील

ज़ियाँ गर कुछ हुआ तो उतना जितना सूद होता है

शमीम अब्बास

कहीं हुस्न का तक़ाज़ा कहीं वक़्त के इशारे

शकील बदायुनी

अब तक शिकायतें हैं दिल-ए-बद-नसीब से

शकील बदायुनी

तुम्हारे इश्क़ में हम नंग-ओ-नाम भूल गए

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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