घाव Poetry

इश्क़ उस से किया है तो ये गर याद भी रक्खो

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

पतझड़ का मौसम था लेकिन शाख़ पे तन्हा फूल खिला था

बिमल कृष्ण अश्क

जो महका रहे तेरी याद सुहानी में

बीना गोइंदी

प्यार का यूँ दस्तूर निभाना पड़ता है

वलीउल्लाह वली

इश्क़ को आँख में जलते देखा

नजमा शाहीन खोसा

किसी के बिछड़ने का डर ही नहीं

फ़ारूक़ इंजीनियर

मैं तिरे लुत्फ़-ओ-करम का जब से रस पीने लगा

अख़्तर हाशमी

बेचैनी

दौर आफ़रीदी

सुकूत-ए-शब

अज़हर क़ादिरी

'साहिर-लुधियानवी के लिए

बात बह जाने की सुन कर अश्क बरहम हो गए

फ़ुग़ाँ के साथ तिरे राहत-ए-क़रार चले

हमारे शहर में आने की सूरत चाहती हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

हमें यूँही न सर-ए-आब-ओ-गिल बनाया जाए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

कभी जब्र-ओ-सितम के रू-ब-रू सर ख़म नहीं होता

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

दीपक-राग है चाहत अपनी काहे सुनाएँ तुम्हें

ज़ुहूर नज़र

अपनों के ज़ख़्म खा के मैं निकला जो शहर से

ज़ुहैर कंजाही

मिरी ज़ात का हयूला तिरी ज़ात की इकाई

ज़ुहैर कंजाही

तिलस्माती फ़ज़ा तख़्त-ए-सुलैमाँ पर लिए जाना

ज़ुबैर शिफ़ाई

वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए

ज़ुबैर रिज़वी

बरसों में तुझे देखा तो एहसास हुआ है

ज़ुबैर रिज़वी

है हर्फ़ हर्फ़ ज़ख़्म की सूरत खिला हुआ

ज़ुबैर फ़ारूक़

आँखों में है बसा हुआ तूफ़ान देखना

ज़ुबैर फ़ारूक़

देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह

ज़िया जालंधरी

गो आज अँधेरा है कल होगा चराग़ाँ भी

ज़िया फ़तेहाबादी

ये ख़ाल-ओ-ख़द मिरे अपने

ज़ेहरा निगाह

रुक जा हुजूम-ए-गुल कि अभी हौसला नहीं

ज़ेहरा निगाह

कोई हंगामा सर-ए-बज़्म उठाया जाए

ज़ेहरा निगाह

हर ख़ार इनायत था हर इक संग सिला था

ज़ेहरा निगाह

हमें तो आदत-ए-ज़ख़्म-ए-सफ़र है क्या कहिए

ज़ेहरा निगाह

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