विरोधी - Poetry

ये हसरतें भी मिरी साइयाँ निकाली जाएँ

एहतिमाम सादिक़

शुऊर-ओ-फ़िक्र से आगे निकल भी सकता है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

खिड़की तो 'शाज़' बंद मैं करता हूँ बार बार

ज़करिय़ा शाज़

उस का ख़याल दिल में घड़ी दो घड़ी रहे

ज़करिय़ा शाज़

तलब आसूदगी की अर्सा-ए-दुनिया में रखते हैं

ज़हीर काश्मीरी

रंग जमने न दिया बात को चलने न दिया

ज़हीर देहलवी

जाते हो तुम जो रूठ के जाते हैं जी से हम

ज़हीर देहलवी

जहाँ में कौन कह सकता है तुम को बेवफ़ा तुम हो

ज़हीर देहलवी

फ़स्ल-ए-गुल को ज़िद है ज़ख़्म दिल का हरा कैसे हो

ज़फ़र गौरी

इज़्ज़त उन्हें मिली वही आख़िर बड़े रहे

वासिफ़ देहलवी

ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है

वसीम बरेलवी

कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो

वसीम बरेलवी

चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो

वसीम बरेलवी

उसे ज़िद कि 'वामिक़'-ए-शिकवा-गर किसी राज़ से न हो बा-ख़बर

वामिक़ जौनपुरी

मिरे फ़िक्र ओ फ़न को नई फ़ज़ा नए बाल-ओ-पर की तलाश है

वामिक़ जौनपुरी

हुस्न पर बोझ हुए उस के ही वा'दे अब तो

वली आलम शाहीन

अच्छा हुआ कि इश्क़ में बर्बाद हो गए

वजीह सानी

आगही की दुआ

वहीद अख़्तर

सफ़र ही बाद-ए-सफ़र है तो क्यूँ न घर जाऊँ

वहीद अख़्तर

कतरा के गुल्सिताँ से जो सू-ए-क़फ़स चले

वहीद अख़्तर

उस हिज्र पे तोहमत कि जिसे वस्ल की ज़िद हो

विपुल कुमार

जुनूँ के बाब में अब के ये राएगानी हो

विपुल कुमार

मुसाफ़िरों के लिए साज़गार थोड़ी है

विकास शर्मा राज़

हाँ वफ़ाओं का मेरी ध्यान भी था

विकास शर्मा राज़

उजड़ के घर से सर-ए-राह आ के बैठे हैं

वारिस किरमानी

किसे बताऊँ कि ग़म क्या है सरख़ुशी क्या है

उरूज ज़ैदी बदायूनी

नाम लोगे जो याँ से जाने का

मीर तस्कीन देहलवी

पागल वहशी तन्हा तन्हा उजड़ा उजड़ा दिखता हूँ

तरकश प्रदीप

ज़मीन इतनी नहीं है कि पाँव रख पाएँ

तारिक़ नईम

फिर इस से क़ब्ल कि बार-ए-दिगर बनाया जाए

तारिक़ नईम

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