ज़याँ Poetry

जो मुझ में छुपा मेरा गला घोंट रहा है

फ़हमीदा रियाज़

ख़्वाबों ख़यालों की अप्सरा

दौर आफ़रीदी

बेचैनी

दौर आफ़रीदी

कूज़ा-गर देख अगर चाक पे आना है मुझे

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

फ़रज़ाना हूँ और नब्ज़-शनास-ए-दो-जहाँ हूँ

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

घर नहीं बस्ती नहीं शोर-ए-फ़ुग़ाँ चारों तरफ़ है

ज़ुबैर शिफ़ाई

सितमगरी भी मिरी कुश्तगाँ भी मेरे थे

ज़ुबैर रिज़वी

जी रहा हूँ प क्या यूँही जीता रहूँ

ज़िया जालंधरी

जाँ देना बस एक ज़ियाँ का सौदा था

ज़ेहरा निगाह

मुझ से ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या

ज़ेब ग़ौरी

है बहुत ताक़ वो बेदाद में डर है ये भी

ज़ेब ग़ौरी

बू-ए-गुल रक़्स में है बाद-ए-ख़िज़ाँ रक़्स में है

ज़ाहिदा ज़ैदी

हमराह लुत्फ़-ए-चश्म-ए-गुरेज़ाँ भी आएगी

ज़हीर काश्मीरी

जहाँ मेरे न होने का निशाँ फैला हुआ है

ज़फ़र इक़बाल

देखो तो कुछ ज़ियाँ नहीं खोने के बावजूद

ज़फ़र इक़बाल

सात रंगों से बनी है याद ताज़ा

ज़फ़र गौरी

हर लहज़ा मिरी ज़ीस्त मुझे बार-ए-गराँ है

यूसुफ़ तक़ी

करम के इस दौर-ए-इम्तिहाँ से वो दौर-ए-मश्क़-ए-सितम ही अच्छा

याक़ूब उस्मानी

क्या हुआ हम से जो दुनिया बद-गुमाँ होने लगी

याक़ूब आमिर

हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं

वाली आसी

परोमीथियस

वहीद अख़्तर

इक दश्त-ए-बे-अमाँ का सफ़र है चले-चलो

वहीद अख़्तर

थम ज़रा वक़्त-ए-अजल दीदार-ए-जाँ होने लगा

उम्मीद ख़्वाजा

छब्बीस जनवरी

तिलोकचंद महरूम

कितने ही तीर ख़म-ए-दस्त-ओ-कमाँ में होंगे

तौसीफ़ तबस्सुम

किसी ने पूछा जो उम्र-ए-रवाँ के बारे में

तसनीम आबिदी

तेरी वफ़ा का हम को गुमाँ इस क़दर हुआ

तासीर सिद्दीक़ी

जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात

तारिक़ क़मर

सारी तरतीब-ए-ज़मानी मिरी देखी हुई है

तारिक़ नईम

मोहब्बत में ज़ियाँ-कारी मुराद-ए-दिल न बन जाए

ताजवर नजीबाबादी

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