मैं उस के नाम की मेहंदी
सजा कर अपने हाथों पर
उन्हें ता-देर तकती हूँ
कि जितना प्यार वो करता है रंग उतना ही गहरा हो
मगर ये देख कर हैरान होती हूँ
न-जाने क्यूँ
मिरे हाथों पे हर मेहंदी का रंग कच्चा ही आता है
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जो नहीं मुमकिन कभी मुमकिन वो होना चाहिए
मेहंदी
पागल लड़की
आख़िरी मुलाक़ातें
उम्मीद
मानता नहीं मेरी हुज्जतें भी करता है
एक दो अश्क बहाती है चली जाती है
गुज़ारिश
हो तिरा इश्क़ मिरी ज़ात का मेहवर जैसे
सौ बातों की बात है प्यारे वो जो ज़ात में होती है
आख़िरी तंबीह