मेरी कोशिश तो यही है कि ये मा'सूम रहे
और दिल है कि समझदार हुआ जाता है
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उसे छुआ ही नहीं जो मिरी किताब में था
लफ़्ज़ की क़ैद-ओ-रिहाई का हुनर
मैं तो किसी जुलूस में गया नहीं
हवा के वार पे अब वार करने वाला है
हाँ वफ़ाओं का मेरी ध्यान भी था
देखना चाहता हूँ गुम हो कर
बला का हब्स था पर नींद टूटती ही न थी
फ़क़त ज़ंजीर बदली जा रही थी
यहाँ तक कर लिया मसरूफ़ ख़ुद को
मंज़िलों से भी आगे निकलता हुआ
रफ़्ता रफ़्ता क़ुबूल होंगे उसे
एक बरस और बीत गया