मोहब्बत के आदाब सीखो ज़रा
उसे जान कह कर पुकारा करो
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हवा के साथ यारी हो गई है
कोई उस के बराबर हो गया है
मिरी उरूज की लिक्खी थी दास्ताँ जिस में
हाँ वफ़ाओं का मेरी ध्यान भी था
अब रवानी से है नजात मुझे
हवा के वार पे अब वार करने वाला है
एक किरन फिर मुझ को वापस खींच गई
रोज़ ये ख़्वाब डराता हैं मुझे
बला का हब्स था पर नींद टूटती ही न थी
फ़िक्र का कारोबार था मुझ में
मुद्दतें हो गईं हिसाब किए
मंज़िलों से भी आगे निकलता हुआ