ग़ुरूब होते हुए सूरजों के पास रहे
कोई चराग़ न जुगनू सफ़र में रक्खा गया
मैं रस्ते में जहाँ ठहरा हुआ था
मौसम हो कोई याद के खे़मे नहीं उठते
मौजों की साज़िशों ने किनारा नहीं दिया