इन पर्बतों के बीच थी मस्तूर इक गुफा
पत्थर की नरमियों में थी महफ़ूज़ काएनात
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Gulzar
Anwar Masood
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(561) Peoples Rate This
ख़ाक के पुतलों में पत्थर के बदन को वास्ता
एक आदमी
इबहाम दीदा
वो रंग का हुजूम सा वो ख़ुशबुओं की भीड़ सी
खुल गया राज़ छुपी चाह का सब महफ़िल पर
हर रौशनी की बूँद पे लब रख चुकी है रात
जंगलों में घूमते फिरते हैं शहरों के फ़क़ीह
उसूल के जज़ीरे
कई भयानक काली रातों के अँधियारे में
जब सफ़र की धूप में मुरझा के हम दो पल रुके
थकावटों से बैठ के सफ़र उतारिए कहीं
पस्पाई