आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
ये मयस्सर हो तो फिर क्यूँ कोई नाशाद रहे
Gulzar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(474) Peoples Rate This
क़द्रदानी की कैफ़ियत मालूम
क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से
शौक़ फिर कूचा-ए-जानाँ का सताता है मुझे
किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'
बहार आई है आराइश-ए-चमन के लिए
संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ
ज़ालिम की तो आदत है सताता ही रहेगा
लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
चला जाता है कारवान-ए-नफ़स
छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'
हर चंद 'वहशत' अपनी ग़ज़ल थी गिरी हुई