निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले
मज़े की चीज़ है ये ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा
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और इशरत की तमन्ना क्या करें
सच कहा है कि ब-उम्मीद है दुनिया क़ाइम
क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से
आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
दिल को हम कब तक बचाए रखते हर आसेब से
छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'
न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं
लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है
ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है
'वहशत' उस बुत ने तग़ाफ़ुल जब किया अपना शिआर
हर चंद 'वहशत' अपनी ग़ज़ल थी गिरी हुई
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है