सीने में मिरे दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी है
इक गौहर-ए-नायाब मिरे हाथ लगा है
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दोनों ने किया है मुझ को रुस्वा
मेरा मक़्सद कि वो ख़ुश हों मिरी ख़ामोशी से
हुए हैं गुम जिस की जुस्तुजू में उसी की हम जुस्तुजू करेंगे
कुछ समझ कर ही हुआ हूँ मौज-ए-दरिया का हरीफ़
आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर
यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया
पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे
जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को
शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने
ऐ मिशअल-ए-उम्मीद ये एहसान कम नहीं
शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़
ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया