'अख़्तर'-ए-ज़ार भी हो मुसहफ़-ए-रुख़ पर शैदा
फ़ाल ये नेक है क़ुरआन से हम देखते हैं
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मुझी को वाइज़ा पंद-ओ-नसीहत
हाल-ए-दिल ऐ बुतो ख़ुदा जाने
गर्मियाँ शोख़ियाँ किस शान से हम देखते हैं
सुन रक्खो उसे दिल का लगाना नहीं अच्छा
यही तशवीश शब-ओ-रोज़ है बंगाले में
याद में अपने यार-ए-जानी की
बराए-सैर मुझ सा रिंद मय-ख़ाने में गर आए
अल्लाह ऐ बुतो हमें दिखलाए लखनऊ
दस्तार-ए-फ़क़ीराना इक ताज से अफ़्ज़ूँ है
तुराब-ए-पा-ए-हसीनान-ए-लखनऊ है ये
सुना है कूच तो उन का पर इस को क्या कहिए