बराए-सैर मुझ सा रिंद मय-ख़ाने में गर आए
गिरे साग़र लुंढे शीशा हँसे साक़ी बहे दरिया
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दिखाते हैं जो ये सनम देखते हैं
सहे ग़म पए रफ़्तगाँ कैसे कैसे
लजयाई से नाज़ुक है ऐ जान बदन तेरा
उल्फ़त ने तिरी हम को तो रक्खा न कहीं का
इश्क़ से कुछ काम ने कुछ कू-ए-जानाँ से ग़रज़
यही तशवीश शब-ओ-रोज़ है बंगाले में
जा बैठते हो ग़ैरों में ग़ैरत नहीं आती
बुतो ख़ुदा से डरो संग दिल सिवा न करो
चाक चाक अपना गरेबाँ न हुआ था सो हुआ
ज़ोहरा सुहैल शम्स ख़ुर बद्र बहा तू कौन है
बरबाद न कर उस को ज़रा हाथ पे धर ला
सुन रक्खो उसे दिल का लगाना नहीं अच्छा