जपे है विर्द सा तुझ से सनम के नाम को शैख़
नमाज़ तोड़ उठे तेरे राम राम को शैख़
सिवा हमारे तू ज़ाहिद को मत दिखा आँखें
बग़ैर रिंदों के क्या जाने क़द्र जाम को शैख़
जो आवे वक़्त-ए-नमाज़ उस के सामने मिरा शोख़
करूँ मैं सज्दा अगर फेरे सर सलाम को शैख़
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ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे
कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग
जब से दिलबर ने आँख फेरा है
माह-ए-कामिल हो मुक़ाबिल यार के रू से चे-ख़ुश
न शोख़ियों से करे हैं वो चश्म-ए-गुल-गूँ रक़्स
तुझ क़बा पर गुलाब का बूटा
जब तन न रहा मेरा हूँ वासिल-ए-जानाना
ग़नीमत बूझ लेवें मेरे दर्द-आलूद नालों को
जो आशिक़ हो उसे सहरा में चल जाने से क्या निस्बत
बाद-ए-बहार में सब आतिश जुनून की है
ऐ यार मुझ अफ़सुर्दा-ए-हिज्राँ को पहुँच तू
बहार आई जुनूँ लेगा हमारा इम्तिहाँ देखें