जपे है विर्द सा तुझ से सनम के नाम को शैख़
नमाज़ तोड़ उठे तेरे राम राम को शैख़
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हम उस की ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर में हुए हैं असीर
ख़ुदा ही पहुँचे फ़रियादों को हम से बे-नसीबों के
तीरा-बख़्तों को करे है नाला-ए-ग़मगीं ख़राब
कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग
मेरे अश्कों की गई थी रेल वीराने पे क्या गुज़रा
नंग नहीं मुझ को तड़पने से सँभल जाने का
ख़ुदा किसी कूँ किसी साथ आश्ना न करे
बहार आई जुनूँ लेगा हमारा इम्तिहाँ देखें
आज दिल बे-क़रार है मेरा
गर मेरे लहू रोने का बारान बनेगा
फ़स्ल-ए-गुल में नईं बघूले उठते वीरानों के बीच