शब-ए-फ़िराक़ न काटे कटे है क्या कीजे
शब-ए-फ़िराक़ न काटे कटे है क्या कीजे
न सुब्ह होए है न पौ फटे है क्या कीजे
सफ़ा था अक्स-ए-रुख़ उस के से दिल का आईना
अब उस पे ज़ंग-ए-कुदूरत अटे है क्या कीजे
रहीम-ओ-राम की सुमरन है शैख़-ओ-हिन्दू को
दिल उस के नाम की रटना रटे है क्या कीजे
बसान हर मिज़ा पर पारा-ए-दिल-मजरूह
हर एक पल न शुमुर्दा बटे है क्या कीजे
पिए था रात तो कल ग़ैर पास यार शराब
और आज क़स्में ही खा खा नटे है क्या कीजे
ये जूँ जूँ वा'दे के दिन रात पड़ते जाते हैं
घड़ी घड़ी में मिरा जी कटे है क्या कीजे
रक़ीब जम के ये बैठा कि हम उठे नाचार
ये पत्थर अब न हटाए हटे है क्या कीजे
जिगर के टुकड़ों से जब तक कि गोद भर ले आए
ये तिफ़्ल-ए-अश्क तो रो-रो हटे है क्या कीजे
ये दुख़्त-ए-रज़ कोई ऐसे लुटी मिले है 'मुहिब'
दिल उस की ताक में अपना लुटे है क्या कीजे
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