जलता है कि ख़ुर्शीद की इक रोटी हो तय्यार
ले शाम से ता-सुब्ह तनूर-ए-शब-ए-महताब
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Habib Jalib
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Gulzar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(572) Peoples Rate This
उधर वो बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम क़ातिल है
ये दाढ़ी मोहतसिब ने दुख़्त-ए-रज़ के फाड़ खाने को
ग़ौर कर देखो तो ये इक तार का बिस्तार है
शैख़ कहते हैं मुझे दैर न जा काबा चल
वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह
इन दो के सिवा कोई फ़लक से न हुआ पार
रात आख़िर है यहाँ आया नज़र आसार-ए-सुब्ह
है मिरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहीं
हो जिस क़दर कि तुझ से ऐ पुर-जफ़ा जफ़ा कर
दर्स-ए-इल्म-ए-इश्क़ से वाक़िफ़ नहीं मुतलक़ फ़क़ीह
ऐ हम-नफ़स उस ज़ुल्फ़ के अफ़्साने को मत छेड़
राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस