जो अपने जीते-जी को कुएँ में डुबोइए
तो चाह में किसी की गिरफ़्तार होइए
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शब न ये सर्दी से यख़-बस्ता ज़मीं हर तर्फ़ है
देखता कुछ हूँ ध्यान में कुछ है
राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस
हम-दिगर मोमिन को है हर बज़्म में तकफ़ीर-ए-जंग
पहचाने तू हर-दम वही हर आन वही है
पहले सफ़-ए-उश्शाक़ में मेरा ही लहू चाट
न कीजे वो कि मियाँ जिस से दिल कोई हो मलूल
फूलों की सेज दोस्त की ख़ातिर 'मुहिब' बिछाओ
शोरिश से चश्म-ए-तर की ज़ि-बस ग़र्क़-ए-आब हूँ
ऐ दिल आता है चमन में वो शराबी तू पहुँच
तमाम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा ज़ेर-ए-आसमाँ की समेट
वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह