अपनी इस आदत पे ही इक रोज़ मारे जाएँगे
कोई दर खोले न खोले हम पुकारे जाएँगे
Rahat Indori
Parveen Shakir
Habib Jalib
Gulzar
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(780) Peoples Rate This
मेरी तन्हाइयाँ भी शाएर हैं
कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी
खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
हवेलियों में मिरी तर्बियत नहीं होती
न जाने क्यूँ मुझे उस से ही ख़ौफ़ लगता है
मुझे पढ़ता कोई तो कैसे पढ़ता
हम ये तो नहीं कहते कि हम तुझ से बड़े हैं
उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया
दूसरों को मिटाने की धुन में
चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो
हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल