जाए आशिक़ की बला हश्र में क्या रक्खा है

जाए आशिक़ की बला हश्र में क्या रक्खा है

एक फ़ित्ना तिरी ठोकर का उठा रक्खा है

लुत्फ़-ए-कौनैन है इस में मिरी बोतल की पियो

ज़ाहिदो चश्मा-ए-तसनीम में क्या रक्खा है

मिल ही जाता है कोई छेड़ने वाला मुझ को

तुम अलग हो तो मुझे दिल ने सता रक्खा है

कल वो फ़ित्ना भी क़यामत में क़यामत होगा

जिस को आज आप ने क़दमों से लगा रक्खा है

आए मय्यत पे किस अंदाज़ से फ़रमाते हैं

दम मिरे छेड़ने को उस ने चुरा रक्खा है

दिल उड़े जाते हैं हर फ़ितना-ए-आवाज़ के साथ

बैठ कर पर्दों में इक हश्र उठा रक्खा है

ख़ुश रहोगे जो पियो बादा फ़क़ीरी में 'वसीम'

मुझ को इक मस्त ने ये भेद बता रक्खा है

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In Hindi By Famous Poet Waseem Khairabadi. is written by Waseem Khairabadi. Complete Poem in Hindi by Waseem Khairabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.