हज़ारों मौसमों की हुक्मरानी है मिरे दिल पर
'वसी' मैं जब भी हँसता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
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हर एक मौसम में रौशनी सी बिखेरते हैं
समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
तुम मिरी आँख के तेवर न भुला पाओगे
हर इक मुफ़लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
मुझे ख़बर थी कि अब लौट कर न आऊँगा
कैसा मफ़्तूह सा मंज़र है कई सदियों से
आँखों में चुभ गईं तिरी यादों की किर्चियाँ
जैसे हो उम्र भर का असासा ग़रीब का
जो तू नहीं है तो ये मुकम्मल न हो सकेंगी
मुद्दतों उस की ख़्वाहिश से चलते रहे हाथ आता नहीं
कौन कहता है मुलाक़ात मिरी आज की है