कौन कहता है मुलाक़ात मिरी आज की है
तू मिरी रूह के अंदर है कई सदियों से
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तो मैं भी ख़ुश हूँ कोई उस से जा के कह देना
आँखों में चुभ गईं तिरी यादों की किर्चियाँ
मुझे ख़बर थी कि अब लौट कर न आऊँगा
इस जुदाई में तुम अंदर से बिखर जाओगे
जो तू नहीं है तो ये मुकम्मल न हो सकेंगी
दुख दर्द में हमेशा निकाले तुम्हारे ख़त
समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
तुम मिरी आँख के तेवर न भुला पाओगे
हज़ारों मौसमों की हुक्मरानी है मिरे दिल पर
हर एक मौसम में रौशनी सी बिखेरते हैं
उदास रातों में तेज़ कॉफ़ी की तल्ख़ियों में