दीदार से पहले ही क्या हाल हुआ दिल का
क्या होगा जो उल्टेंगे वो रुख़ से नक़ाब आख़िर
Rahat Indori
Habib Jalib
Wasi Shah
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(670) Peoples Rate This
हरीम-ए-नाज़ को हम ग़ैर की महफ़िल नहीं कहते
दामन के दाग़ अश्क-ए-नदामत ने धो दिए
नहीं मालूम कितने हो चुके हैं इम्तिहाँ अब तक
ज़र्रा हरीफ़-ए-मेहर दरख़्शाँ है आज कल
बयाँ ऐ हम-नशीं ग़म की हिकायत और हो जाती
ये महफ़िल आज ना-अहलों से जो मामूर है 'वासिफ़'
वो जिस की जुस्तुजू-ए-दीद में पथरा गईं आँखें
क्या ग़म जो हसरतों के दिए बुझ गए तमाम
तिरी उल्फ़त में जितनी मेरी ज़िल्लत बढ़ती जाती है
ज़ुलेख़ा के वक़ार-ए-इश्क़ को सहरा से क्या निस्बत
बुझते हुए चराग़ फ़रोज़ाँ करेंगे हम
अगर ख़ू-ए-तहम्मुल हो तो कोई ग़म नहीं होता