ऐसे बढ़े कि मंज़िलें रस्ते में बिछ गईं
ऐसे गए कि फिर न कभी लौटना हुआ
Anwar Masood
Wasi Shah
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
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चुटकी भर रौशनी
जबीं-ए-संग पे लिक्खा मिरा फ़साना गया
बादल बरस के खुल गया रुत मेहरबाँ हुई
टीन का डिब्बा
दुख मैले आकाश का
वो ख़ुश-कलाम है ऐसा कि उस के पास हमें
सकता
धूप के साथ गया साथ निभाने वाला
कराँ-ता-कराँ
रेज़ा रेज़ा कर जाता है
ये कैसी आँख थी जो रो पड़ी है