ये किस हिसाब से की तू ने रौशनी तक़्सीम
सितारे मुझ को मिले माहताब उस का था
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वो ख़ुश-कलाम है ऐसा कि उस के पास हमें
बे-सदा दम-ब-ख़ुद फ़ज़ा से डर
कितनी बार बुलाया उस को
इक बे-अंत वजूद
आवेज़िश
उस की आवाज़ में थे सारे ख़द-ओ-ख़ाल उस के
इस गिर्या-ए-पैहम की अज़िय्यत से बचा दे
वो दिन गए कि छुप के सर-ए-बाम आएँगे
मुसाफ़िर चलते रहते हैं
ख़ुद अपने ग़म ही से की पहले दोस्ती हम ने
आसमाँ पर अब्र-पारे का सफ़र मेरे लिए
कराँ-ता-कराँ