बाक़ी रहा न फ़र्क़ ज़मीन आसमान में
अपना क़दम उठा लें अगर दरमियाँ से हम
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महशर का हमें क्या ग़म इस्याँ किसे कहते हैं
बात भी आप के आगे न ज़बाँ से निकली
मेरे अशआ'र से मज़मून-ए-रुख़-ए-यार खुला
जो अदू-ए-बाग़ हो बरबाद हो
दिल में इक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए
आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा
फ़स्ल-ए-गुल ही ज़ाहिदों को ग़म ही मय-कश शाद हैं
ऐ सबा क़िल'अ-ए-हस्ती से जो दम घबराया
नफ़्स नमरूद है क्या होना है
दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज
उठा दी क़ैद-ए-मज़हब दिल से हम ने
कोई सूरत से गर सफ़ा हो