जब उस बे-मेहर को ऐ जज़्ब-ए-दिल कुछ जोश आता है
मह-ए-नौ की तरह खोले हुए आग़ोश आता है
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महशर का हमें क्या ग़म इस्याँ किसे कहते हैं
कोई सूरत से गर सफ़ा हो
बे-ताबी-ए-दिल ने ज़ार-पा कर
मेरे अशआ'र से मज़मून-ए-रुख़-ए-यार खुला
वाइ'ज़ के मैं ज़रूर डराने से डर गया
रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में
हुआ धूप में भी न कम हुस्न-ए-यार
हम भी ज़रूर कहते किसी काम के लिए
आप अपनी बेवफ़ाई देखिए
का'बे की सम्त सज्दा किया दिल को छोड़ कर
दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज
ख़ाक में मुझ को मिला के वो सनम कहता है