का'बे की सम्त सज्दा किया दिल को छोड़ कर
तो किस तरफ़ था ध्यान हमारा किधर गया
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जब मैं रोता हूँ तो अल्लाह रे हँसना उन का
न पढ़ा यार ने अहवाल-ए-शिकस्ता मेरा
बाग़-ए-आलम में है बे-रंग बयान-ए-वाइ'ज़
ऐ सबा क़िल'अ-ए-हस्ती से जो दम घबराया
बाक़ी रहा न फ़र्क़ ज़मीन आसमान में
अहवाल-ए-मज़ाहिब से ये साबित हुआ हम को
बंदा अब ना-सुबूर होता है
साकिन-ए-दैर हूँ इक बुत का हूँ बंदा ब-ख़ुदा
दिलों में गब्र-ओ-मुसलमाँ ज़रा ख़याल करें
चश्म वा रह गई देखा जो तिलिस्मात-ए-जहाँ
उल्फ़त-ए-कूचा-ए-जानाँ ने किया ख़ाना-ख़राब
जब उस बे-मेहर को ऐ जज़्ब-ए-दिल कुछ जोश आता है