बे-धड़क पिछले पहर नाला-ओ-शेवन न करें
कह दे इतना तो कोई ताज़ा-गिरफ़्तारों से
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हाथ उलझा है गरेबाँ में तो घबराओ न 'यास'
दामन-ए-क़ातिल जो उड़ उड़ कर हवा देने लगे
ऐसा न हो हक़ का सामना हो जाए
ख़ुदा जाने अजल को पहले किस पर रहम आएगा
बाज़ आ साहिल पे ग़ोते खाने वाले बाज़ आ
बे-दर्द हो क्या जानो मुसीबत के मज़े
वाइज़ की आँखें खुल गईं पीते ही साक़िया
उदासी छा गई चेहरे पे शम-ए-महफ़िल के
इम्तियाज़-ए-सूरत-ओ-मअ'नी से बेगाना हुआ
मुश्किल कोई मुश्किल नहीं जीने के सिवा
दर्द हो तो दवा भी मुमकिन है