हुस्न-ए-ज़ाती भी छुपाए से कहीं छुपता है
सात पर्दों से अयाँ शाहिद-ए-मअ'नी होगा
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झाँकने ताकने का वक़्त गया
मौजों से लिपट के पार उतरने वाले
फ़र्दा को दूर ही से हमारा सलाम है
चले चलो जहाँ ले जाए वलवला दिल का
ज़माना ख़ुदा को ख़ुदा जानता है
यूसुफ़ को उस अंजुमन में क्या ढूँढता है
अपनी हद से गुज़र गए अब क्या है
'यगाना' वही फ़ातेह-ए-लखनऊ हैं
वाँ नक़ाब उट्ठी कि सुब्ह-ए-हश्र का मंज़र खुला
हाथ उलझा है गरेबाँ में तो घबराओ न 'यास'
यार है आइना है शाना है