मरते दम तक तिरी तलवार का दम भरते रहे
हक़ अदा हो न सका फिर भी वफ़ादारों से
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1045) Peoples Rate This
क्यूँ मतलब-ए-हस्ती-ओ-अदम खुल जाता
यार है आइना है शाना है
दुनिया से अलग जा के कहीं सर फोड़ो
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शर्माना नहीं आता
सुब्ह-ए-अज़ल ओ शाम-ए-अबद कुछ भी नहीं
दामन-ए-क़ातिल जो उड़ उड़ कर हवा देने लगे
ठोकरें खिलवाईं क्या-क्या पा-ए-बे-ज़ंजीर ने
दुनिया-तलबी जाएगी क्या जान के साथ
साक़ी मैं देखता हूँ ज़मीं आसमाँ का फ़र्क़
झाँकने ताकने का वक़्त गया
क़िस्सा किताब-ए-उम्र का क्या मुख़्तसर हुआ
दीवाना-वार दौड़ के कोई लिपट न जाए