बेदर्द हो क्या जानो मुसीबत के मज़े
हैं रंज के दम-क़दम से राहत के मज़े
दोज़ख़ की हवा तो पहले खा लो साहब
क्या ढूँडते हो अभी से जन्नत के मज़े
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Gulzar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(974) Peoples Rate This
का'बा नहीं कि सारी ख़ुदाई को दख़्ल हो
कोई तुझ को पुकारता जाता है
झाँकने ताकने का वक़्त गया
ऐसा न हो हक़ का सामना हो जाए
दुनिया के साथ दीन की बेगार अल-अमाँ
बे-दर्द हो क्या जानो मुसीबत के मज़े
ग़ालिब और मीरज़ा 'यगाना' का
गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ
दुनिया-तलबी जाएगी क्या जान के साथ
ख़ुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गया
बाज़ आ साहिल पे ग़ोते खाने वाले बाज़ आ
यकसाँ कभी किसी की न गुज़री ज़माने में