दुनिया-तलबी जाएगी क्या जान के साथ
कैसी ये बला लगी मुसलमान के साथ
कैसा क़ुरआन और कहाँ का ईमान
ईमान रहा ताक़ पे क़ुरआन के साथ
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गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ
अपनी हद से गुज़र गए अब क्या है
बैठा हूँ पाँव तोड़ के तदबीर देखना
बे-धड़क पिछले पहर नाला-ओ-शेवन न करें
मुश्किल कोई मुश्किल नहीं जीने के सिवा
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता
सब्र करना सख़्त मुश्किल है तड़पना सहल है
बे-दर्द हो क्या जानो मुसीबत के मज़े
ख़ुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गया
आप से आप अयाँ शाहिद-ए-मअ'नी होगा
वही साक़ी वही साग़र वही शीशा वही बादा
चलता नहीं फ़रेब किसी उज़्र-ख़्वाह का