दोस्ती बद बला है इस में ख़ुदा
किसी दुश्मन को मुब्तला न करे
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सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था
कार-ए-दीं उस बुत के हाथों हाए अबतर हो गया
ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे
चला आँखों से जब कश्ती में वो महबूब जाता है
हक़ मुझे बातिल-आश्ना न करे
सौ सौ हैं इल्तिफ़ात तग़ाफ़ुल में यार के
इस क़दर ग़र्क़ लहू में ये दिल-ए-ज़ार न था
चश्म-ए-तर पर गर नहीं करता हवा पर रहम कर
यार कब दिल की जराहत पे नज़र करता है
मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ
तसव्वुर उस दहान-ए-तंग का रुख़्सत नहीं देता