इतनी बे-रब्त कहानी नहीं अच्छी लगती
और वाज़ेह भी इशारे नहीं अच्छे लगते
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रस्ते से मिरी जंग भी जारी है अभी तक
मिसाल-ए-अक्स मिरे आइने में ढलता रहा
अपनी निगाह पर भी करूँ ए'तिबार क्या
एक इक हर्फ़ समेटो मुझे तहरीर करो
दरिया की रवानी वही दहशत भी वही है
समुंदर हो तो उस में डूब जाना भी रवा है
अता-ए-अब्र से इंकार करना चाहिए था
क्यूँ ढूँडने निकले हैं नए ग़म का ख़ज़ीना
मिरी हर बात पस-मंज़र से क्यूँ मंसूब होती है
उफ़ुक़ तक मेरा सहरा खिल रहा है
उस के शिकस्ता वार का भी रख लिया भरम
इतने आसूदा किनारे नहीं अच्छे लगते