रस्ते से मिरी जंग भी जारी है अभी तक
और पाँव तले ज़ख़्म की वहशत भी वही है
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जो डुबोएगी न पहुँचाएगी साहिल पे हमें
अपनी निगाह पर भी करूँ ए'तिबार क्या
किसी के नर्म लहजे का क़रीना
समुंदर हो तो उस में डूब जाना भी रवा है
मुसलसल एक ही तस्वीर चश्म-ए-तर में रही
इक बे-पनाह रात का तन्हा जवाब था
इतने आसूदा किनारे नहीं अच्छे लगते
दरिया की रवानी वही दहशत भी वही है
उस इमारत को गिरा दो जो नज़र आती है
अता-ए-अब्र से इंकार करना चाहिए था
क्यूँ ढूँडने निकले हैं नए ग़म का ख़ज़ीना