ज़िंदगी कोह-ए-बे-सुतूँ गोया
हर नफ़स एक तेशा-ए-फ़र्हाद
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सहन-ए-चमन में हर-सू पत्थर
बज़्म-ए-वफ़ा सजी तो अजब सिलसिले हुए
जल्वा अफ़रोज़ है कअ'बे के उजालों की तरह
निगाह-ए-नाज़ का हासिल है ए'तिबार मुझे
ज़िंदा रहने का वो अफ़्सून-ए-अजब याद नहीं
शम्अ होगी सुब्ह तक बाक़ी न परवाने की ख़ाक
जहाँ कुछ लोग दीवाने बने हैं
इक ख़ुशी के लिए हैं कितने ग़म
सूरज के साथ साथ उभारे गए हैं हम
मिला है तपता सहरा देखने को