ज़ेहनों की कहीं जंग कहीं ज़ात का टकराव
इन सब का सबब एक मफ़ादात का टकराव
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1179) Peoples Rate This
फ़लक ने भी न ठिकाना कहीं दिया हम को
कैसी शब है एक इक करवट पे कट जाता है जिस्म
दिन को भी इतना अंधेरा है मिरे कमरे में
तंहाई को घर से रुख़्सत कर तो दो
अश्क-ए-ग़म आँख से बाहर भी नहीं आने का
मिरा क़लम मिरे जज़्बात माँगने वाले
शायद अब तक मुझ में कोई घोंसला आबाद है
मैं 'ज़फ़र' ता-ज़िंदगी बिकता रहा परदेस में
इरादा हो अटल तो मोजज़ा ऐसा भी होता है
मेरी इक छोटी सी कोशिश तुझ को पाने के लिए
ख़त लिख के कभी और कभी ख़त को जला कर
देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे