कब वो ज़ाहिर होगा और हैरान कर देगा मुझे
जितनी भी मुश्किल में हूँ आसान कर देगा मुझे
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मुझे कुछ भी नहीं मालूम और अंदर ही अंदर
मौसम का हाथ है न हवा है ख़लाओं में
बहुत सुलझी हुई बातों को भी उलझाए रखते हैं
पतंग उड़ाने से क्या मनअ कर सके ज़ाहिद
पाए हुए इस वक़्त को खोना ही बहुत है
मिलूँ उस से तो मिलने की निशानी माँग लेता हूँ
यकसू भी लग रहा हूँ बिखरने के बावजूद
आज कल उस की तरह हम भी हैं ख़ाली ख़ाली
पता चला कोई गिर्दाब से गुज़रते हुए
रुख़-ए-ज़ेबा इधर नहीं करता
ये हाल है तो बदन को बचाइए कब तक
रहता नहीं हूँ बोझ किसी पर ज़ियादा देर