जब अधूरे चाँद की परछाईं पानी पर पड़ी

जब अधूरे चाँद की परछाईं पानी पर पड़ी

रौशनी इक ना-मुकम्मल सी कहानी पर पड़ी

धूप ने कच्चे फलों में दर्द का रस भर दिया

इश्क़ की उफ़्ताद ना-पुख़्ता जवानी पर पड़ी

गर्द ख़ामोशी की सब मेरे दहन से धुल गई

इस क़दर बारिश सुख़न की बे-ज़बानी पर पड़ी

उस ने अपने क़स्र से कब झाँक कर देखा हमें

कब नज़र उस की हमारी बे-मकानी पर पड़ी

अस्ल सोने पर था जितना भी मुलम्मा' जल गया

धूप उस शिद्दत की अल्फ़ाज़-ओ-मआ'नी पर पड़ी

तर्क कीजे अब दिलों में नर्म गोशों की तलाश

बे-हिसी की ख़ाक हर्फ़-ए-मेहरबानी पर पड़ी

ज़ख़्म-ए-दिल उस की तवाज़ो' में नमकदाँ बन गया

ये मुसीबत भी हमारी मेज़बानी पर पड़ी

अपने हाथों टूटने का तजरबा तो हो गया

चोट बे-शक सख़्त थी जो ख़ुश-गुमानी पर पड़ी

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