ज़हीर देहलवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़हीर देहलवी
नाम | ज़हीर देहलवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Zaheer Dehlvi |
जन्म की तारीख | 1825 |
मौत की तिथि | 1911 |
जन्म स्थान | Delhi |
'ज़हीर'-ए-ख़स्ता-जाँ सच है मोहब्बत कुछ बुरी शय है
यूँ तो होते हैं मोहब्बत में जुनूँ के आसार
यहाँ देखूँ वहाँ देखूँ इसे देखूँ उसे देखूँ
वो जितने दूर खिंचते हैं तअल्लुक़ और बढ़ता है
तुम ने पहलू में मिरे बैठ के आफ़त ढाई
शिरकत गुनाह में भी रहे कुछ सवाब की
सर पे एहसान रहा बे-सर-ओ-सामानी का
समझेंगे न अग़्यार को अग़्यार कहाँ तक
सब कुछ मिला हमें जो तिरे नक़्श-ए-पा मिले
क़हर है ज़हर है अग़्यार को लाना शब-ए-वस्ल
मुँह छुपाना पड़े न दुश्मन से
लुत्फ़ जब आए शिकवा-संजी का
कोई पूछे तो सही हम से हमारी रूदाद
किस मुँह से हाथ उठाएँ फ़लक की तरफ़ 'ज़हीर'
किस की आशुफ़्ता-मिज़ाजी का ख़याल आया है
ख़ैर से रहता है रौशन नाम-ए-नेक
कभी बोलना वो ख़फ़ा ख़फ़ा कभी बैठना वो जुदा जुदा
इश्क़ क्या शय है हुस्न है क्या चीज़
इश्क़ है इश्क़ तो इक रोज़ तमाशा होगा
इंसान वो क्या जिस को न हो पास ज़बाँ का
हुस्न की गर्मी-ए-बाज़ार इलाही तौबा
हम और चाह ग़ैर की अल्लाह से डरो
है लुत्फ़ तग़ाफ़ुल में या जी के जलाने में
है दिल में अगर उस से मोहब्बत का इरादा
गुदगुदाया जो उन्हें नाम किसी का ले कर
दर्द और दर्द भी जुदाई का
चौंक पड़ता हूँ ख़ुशी से जो वो आ जाते हैं
चाहत का जब मज़ा है कि वो भी हों बे-क़रार
बुझाऊँ क्या चराग़-ए-सुब्ह-गाही
बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया