है दिल में अगर उस से मोहब्बत का इरादा
ले लीजिए दुश्मन के लिए हम से वफ़ा क़र्ज़
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कुछ न कुछ रंज वो दे जाते हैं आते जाते
बुतों से बच के चलने पर भी आफ़त आ ही जाती है
दे हश्र के वादे पे उसे कौन भला क़र्ज़
रंज राहत-असर न हो जाए
किस मुँह से हाथ उठाएँ फ़लक की तरफ़ 'ज़हीर'
दर्द और दर्द भी जुदाई का
नसीहत-गरो दिल लगाया तो होता
ऐ मेहरबाँ है गर यही सूरत निबाह की
तुम ने पहलू में मिरे बैठ के आफ़त ढाई
सब कुछ मिला हमें जो तिरे नक़्श-ए-पा मिले
मिलने का नहीं रिज़्क़-ए-मुक़द्दर से सिवा और
बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया