किस की आशुफ़्ता-मिज़ाजी का ख़याल आया है
आप हैरान परेशान कहाँ जाते हैं
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फटा पड़ता है जोबन और जोश-ए-नौ-जवानी है
क़हर है ज़हर है अग़्यार को लाना शब-ए-वस्ल
कोई पूछे तो सही हम से हमारी रूदाद
गुल हुआ ये किस की हस्ती का चराग़
वाँ तबीअत दम-ए-तक़रीर बिगड़ जाती है
नसीहत-गरो दिल लगाया तो होता
जाते हो तुम जो रूठ के जाते हैं जी से हम
हाए उस शोख़ का अंदाज़ से आना शब-ए-वस्ल
कुफ़्र में भी हम रहे क़िस्मत से ईमाँ की तरफ़
मुरादें कोई पाता है किसी की जान जाती है
दे हश्र के वादे पे उसे कौन भला क़र्ज़
मुँह छुपाना पड़े न दुश्मन से