शिरकत गुनाह में भी रहे कुछ सवाब की
तौबा के साथ तोड़िए बोतल शराब की
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वो नैरंग-ए-उल्फ़त को क्या जानता है
कोई पूछे तो सही हम से हमारी रूदाद
फ़ित्ना-गर शोख़ी-ए-हया कब तक
यहाँ देखूँ वहाँ देखूँ इसे देखूँ उसे देखूँ
गेसू से अंबरी है सबा और सबा से हम
हरीफ़-ए-राज़ हैं ऐ बे-ख़बर दर-ओ-दीवार
चौंक पड़ता हूँ ख़ुशी से जो वो आ जाते हैं
ऐ शैख़ अपने अपने अक़ीदे का फ़र्क़ है
लुत्फ़ जब आए शिकवा-संजी का
रहता तो है उस बज़्म में चर्चा मिरे दिल का
सख़्त दुश्वार है पहलू में बचाना दिल का