तू मिरी ज़ात मिरी रूह मिरा हुस्न-ए-कलाम
देख अब तू न बदल गर्दिश-ए-दौराँ की तरह
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Parveen Shakir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1184) Peoples Rate This
दिल मर चुका है अब न मसीहा बना करो
शब-ए-महताब भी अपनी भरी-बरसात भी अपनी
हिज्र के दौर में हर दौर को शामिल कर लें
इश्क़ जब तक न आस-पास रहा
वो बज़्म से निकाल के कहते हैं ऐ 'ज़हीर'
तमाम उम्र तिरी हम-रही का शौक़ रहा
इक शख़्स रात बंद-ए-क़बा खोलता रहा
वो महफ़िलें वो मिस्र के बाज़ार क्या हुए
बड़े दिल-कश हैं दुनिया के ख़म ओ पेच
मरना अज़ाब था कभी जीना अज़ाब था
मैं ने उस को अपना मसीहा मान लिया
मौसम बदला रुत गदराई अहल-ए-जुनूँ बेबाक हुए